Nios History TMA 2023

प्रश्न 1 अशोक साम्राज्य के सुदृढ़ीकरण में धम्म की भूमिका का परीक्षण कीजिए ।
उत्तर . धम्म एक प्रकार का आचार संहिता या आदर्श व्यवहार था जिसे अपनाने के लिऐ अशोक ने अपनी प्रजा से अनुरोध किया था । अशोक साम्राज्य के सुदृढ़ीकरण में उसके धम्म की भूमिका निम्नलिखित थी
1. अशोक के धम्म में दान – दक्षिणा सच्चाई , पवित्रता और अच्छा व्यवहार शामिल थे । इसके आलावा हिंसा ,क्रोध , अत्याचार आदि पर नियन्त्रणआदि भी शामिल थे।

2. अशोक के धम्म में पशु वध पर पाबंदी , तथा अस्पताल , सड़के , कुओं के निर्माण की भी घोषणा की गई है।
ये सभी राज्य के श्रीकरण के आवाश्यक है इस प्रकार अशोक राज्य में महत्वपूर्ण थीं


प्रश्न 2 संपति का न्यायसंगत वितरण विश्व में क्यों महत्वपूर्ण है ? कारणों का विश्लेषण करे ।

उतर . संपति का न्यासंगत वितरण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। संपति का न्यायसंगत वितरण विश्व में निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण है।

1. इससे सभी में संपति का न्यायसंगत वितरण होगा जिससे पिछड़े देशों को मदद मिलेगी

2. इससे अर्थव्यव्स्था तथा विकास की एकरूता सुनिश्चित होगी यानी अर्थव्यवस्था में संतुलन संतुलन स्थापित होगा। जिससे अमीर तथा गरीब के बीच असमानता में कमी आयेगी
उपरोक्त वर्णित सभी तत्वों के अधार पर हम कह सकते है कि संपति का न्यायसंगत वितरण महत्वपूर्ण है।


प्रश्न 03 परवर्ती मुगल शासकों के काल में मुगल शासकों का पतन हो हो गया था। परंतु इसके बीज जहांगीर और शाहजहां के के काल में ही पड़ चुके थे । आप के अनुसार परवर्ती मुगल शासकों ने मुगल सम्राज्य के पतन को आगे ले जाने में किस प्रकार मदद की ? उत्तर.मुगल सम्राज्य का पतन परवर्ती मुगल शासकों के काल हों गया था परंतु इसके बीज जहांगीर और शाहजहां के के काल में ही पड़ चुके थे । हमारे अनुसार परवर्ती मुगल शासकों ने मुगल सम्राज के पतन को आगे ले जाने में निम्नलिखित प्रकार से योगदान दिया

1. बहादुर शाह प्रथम ( 1707 – 12 ) – इसका शासन काल आने तक कई विद्रोह हुए । इसने गद्दी संभालने के साथ ही समझौते की नीति अपनाई जिसके तहत इसने उन सभी दरबारियों को माफ कर दिया जिन्होंने विद्रोहियों का साथ दिया साथ ही जजिया कर पर भी जोड़ नही दिया ये सभी राज्य को खोखला करता जा रहा था
2. जहांदार शाह( 1712 – 13 ) – यह बहुत ही कमजोर तथा अयोग्य शासक था । इसका अंदाजा इसी लगाया जा सकता है। शासन के एक वर्ष में ही उसके वजीर जुफाकर खान ने सम्राज्य चलाने की सारी शक्तियां हथिया ली
br> प्रश्न 4 पुरापाषाण और नवपाषाण काल के औजरो में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर. पुरा पाषाण काल प्रागैतिहासिक युग का वह समय था जब पत्थर के औजारों का निर्माण शुरु हुआ। इसका कालखंड 2 मिलियन वर्ष पूर्व अत्यंत नूतन युग माना गया है।तथा इतिहास पूर्व के अन्तिम चरण को नव पाषाण युग माना गया है।

(क) पुरापाषाण काल
1. काटने के औजार ( गंडासा)-
यह इस काल के सबसे प्रमुख औजारों में से एक था। इसका काम करने का एक ही सिरा होता था । इसका उपयोग पेड़ो को काटने के लिऐ किया जाता था।

2. चीरने का औजार ( आरी ) – इसकी संरचना दो भागों में बटी होती थीं इसका उपयोग पेड़ो के तनों को चीरने के लिऐ किया जाता था

3. खुदाई का औजार ( बुरिन तक्ष ) – इसकी संरचना पतली ब्लेड या खरपच्चओ के सामान होती थीं इसका उपयोग मुख्यत नरम पत्थरों , हड्डियों तथा चट्टानों की खुदाई के लिऐ किया जाता था।

3.छिलने वाले औजार ( स्क्रेपर्स) – यह भी परखचिओ के ही बने होते थे । इसका उपयोग पेड़ो की छाल तथा पशुओं की चमड़ी प्राप्त करने के लिऐ किया जाता था।

( ख )नवपाषाण काल –
1. घिसाई तथा पॉलिश किए गए औजार – इस काल में घिसाई तथा पॉलिश किए गए औजारों का इस्तेमाल शुरु हो गया था । औजारों को घिसा तथा पॉलिश किया जाता था ताकि वे और अधिक प्रभावी हो जाएं

2. काटने का औजार ( सेल्ट ) – इस काल में काटने के लिऐ एक विशेष प्रकार की कुल्हाड़ी का प्रयोग किया जाता था । जिसे सेल्ट कहा जाता था
उपरोक्त वर्णित विवरण पुरापाषाण तथा नव पाषाण काल के औजारो में अंतर स्पष्ट करते है।

प्रश्न 5 क्षेत्रीय राज्यो और दिल्ली सल्तनत के संबंधों का परीक्षण कीजिए।
उतर. तेरहवीं शताब्दी के पश्चात् दिल्ली सल्तनत में अंदरूनी कमजोरियों के कारण कई क्षेत्रीय राज्यो का उदय हुआ इनमे गुजरात, बंगाल , जौनपुर, कश्मीर आदि प्रमुख थे । इन सभी क्षेत्रीय राज्यो और दिल्ली सल्तनत के बीच सम्बन्ध का परीक्षण निम्नलिखित प्रकार से है।
1. गुजरात – यह दिल्ली सल्तनत के पश्चिम में स्थित बहुत ही समृद्ध तथा उपजाऊ क्षेत्रीय राज्य था । यह अपने विकसित बंदरगाहों तथा हस्तशिल्पो के लिऐ प्रसिद्ध था । अलाउद्दीन खिलजी पहला ऐसा शासक था जिसने गुजरात को दिल्ली सल्तनत से जोड़ा तब से यह दिल्ली के सुबेदारो के अधीन रहा यानी गुजरात और दिल्ली के बीच उपनिवेशिक सम्बंध था
2. बंगाल – यह दिल्ली सल्तनत के सुदूर पूर्व में स्थित क्षेत्रीय राज्य था। अत्याधिक दूरी तथा असहनीय वातरण और परिवहन के साधनों की कमी के कारण दिल्ली सल्तनत इससे उपनिवेशिक सम्बंध नही स्थापित कर पाया

जौनपुर – यह भी दिल्ली के पूर्व में स्थित एक क्षेत्रीय राज्य था । जौनपुर का सूबेदार मालिक सरवर को घोषित किया गया परंतु दिल्ली सल्तनत पर तैमूर के आक्रमण के समय जब दिल्ली सल्तनत शक्तिहीन हो गया तब मौके फायदा उठाकर इसने अपने आप को जौनपुर का स्वतंत्र सम्राट घोषित कर दिया बाद में दिल्ली सल्तनत के महमूद तुगलक के कई प्रयासों के बाद भी वे इसे वापस नही ले पाए अतः जौनपुर से दिल्ली का औपनिवेशिक सम्बंध था

कश्मीर – यह दिल्ली सल्तनत के उत्तरी भाग में स्थित क्षेत्रीय प्रांत था । यह ग्यारहवीं शताब्दी के कट्टर हिन्दू राज्य था । 1339 में शमसुद्दीन यहां का शासक बना तबसे यहां इस्लाम आया इसके बाद कई शक्तिहीन शासक आए जिसका फायदा उठकर 1586 में अकबर ने कश्मीर पर जीत हासिल की और इसे हिस्सा बनाया यानी कश्मीर के साथ भी औपनिवेशिक सम्बंध ही थे।

उपरोक्त सभी संबंधों के परीक्षण से हमे पता चलता है। बंगाल को छोड़कर लगभग सभी क्षेत्रीय राज्यो के साथ औपनिवेशिक सम्बंध ही थे

प्रश्न 6 प्राचीन इतिहासकारों द्वारा प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के सामग्रियों का स्त्रोत बनाएं
1. पुरातत्व स्त्रोत – पुरातत्व स्त्रोत मूल रूप से भौतिक साक्ष्य होते है। जिसके अंतर्गत अतीत के गर्भ पाई जाने वाली वस्तुओं की खुदाई करके इतिहास का अध्ययन किया जाता है

2. साहित्यिक स्त्रोत – साहित्यिक स्त्रोत से हमारा तात्पर्य लिखित स्त्रोतो से है। इसमें धार्मिक तथा धर्मीकेत्तर स्त्रोत शामिल है।

3. विदेशी लेखन – इसमें विदेशी यात्रियों , इतिहासकारों आदि की रचनाओं को शामिल किया जाता है।

प्राचीन इतिहासकारो द्वारा प्रयुक्त विभिन्न प्रकार की स्रोत सामग्रियों की सूची निम्नलिखित प्रकार से है।

Leave a Comment

Call now